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ये तुम्हारा ही घर है, उस पर तुम्हारा पूरा हक है, पर क्या अगर इसी घर में रोज़ खाना है, तो रसोई में थोड़ा हाथ नहीं बँटाया जा सकता?
मेरे ससुराल वाले मेरी तारीफ किया करते, जिससे मेरी जेठानी को बहुत प्रॉब्लम होती और वो रोज नए तरीके ढूंढतीं मुझे नीचा दिखाने के।
रोज यही होता घर आने के बाद सारा काम मेरे सिर पर। मैं तीन प्रकार की सब्जी बनाती, रोटी, बर्तन, शाम की चाय। मैं परेशान होने लगी।
मैंने उठ कर जेठ-जेठानी और उनके दोनों बच्चों के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम किया। लेकिन उस दिन मुझे यह एहसास हुआ कि कुछ लोग कभी नहीं बदल सकते।
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