कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which has cure only in blogs and books...my pen have words about parenting,women empowerment and wellness..love to delve more on relationships and life...
बहुत पछताती हूँ जब उनका फ़ोन नहीं उठा पाती, जब उनके बीमार होने पर उनके पास नहीं जा पाती हूँ तब बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।
कितना मुश्किल है अपने बेटे को अपनी बहु की सेवा करते देखना और कितना अच्छा लगता है अपने दामाद को अपनी बेटी की सेवा करते देखना। है ना?
वास्तव में गरीब मुझे वो लगे जो सामने से गुज़रते हुए अपने बड़े से झोले में भरे इतने सामान में से कुछ खाने का सामान उसे ना दे सके।
खून के रिश्ते होने से परिवार नहीं बनता, परिवार तो वो है जिसने अपने सम्बन्धी को किसी संकट में देख, बिना किसी की परवाह किये उसका हाथ पकड़ने का निर्णय किया।
अवश्य ही एक ये कदम सब लड़कों की मानसिकता ना बदल पाए या समाज में कोई बहुत बड़ा बदलाव ना ला पाए लेकिन कुछ लड़कियों में हिम्मत ज़रूर भर देगा।
एक बात मुझे कभी कभी सोचने पर विवश करती है, मैं कैसी सास बनूँगी? क्या समय का चक्र मुझे भी ठीक वहीं ले जाकर खड़ा करेगा जहां मैं कभी खड़ी थी?
हमारी अच्छाई के हक़दार कौन कौन हैं ये तय करना हमारा काम है क्यूंकि शेर हमें नहीं खाए क्यूंकि हम शाकाहारी हैं, ये तो सही तथ्य नहीं है ना?
कहने को तो शादी के सात साल बाद हमारे बीच बहुत कुछ बदल गया था लेकिन फिर एक दिन अलमारी की सफाई करते करते मेरे हाथ कुछ ऐसा कि मैं वहीं रुक गयी...
मन अंदर तक कचोट जाता, अपने घर की इतनी प्यार से बनाई मिठाइयां जब उनकी ज़ुबान से कड़वी हो जातीं, सो इस बार मैंने मिठाई का डिब्बा उनको दिया ही नहीं।
किसी को नहीं लेकिन जैसे जैसे जीवन रुपी इस परीक्षा से गुज़रने लगी हूँ, डिग्री के लिए दिए जाने वाले वो एक्साम्स बहुत छोटे और आसान लगते हैं।
अपने ही घर में पहचान ढूंढती, प्यार के दो शब्द को तरसती, पल भर गले लगा कर सारी थकान भूलने वाली मशीन उर्फ 'औरत' पूछती है तुमसे, कहाँ हूँ मैं?
रिया ने जाना प्यार की एक नई परिभाषा को...दुनिया को दिखती ये हंसती तस्वीरें अपने पीछे कितनी दर्दभरी कहानियां छुपाये बैठी हैं।
सोचिये, अगर आज मैं आपसे कहूं कि अब से आपके पास कोई इंटरनेट-फेसबुक-व्हाट्सप्प, इत्यादि नहीं होंगे, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी और क्यों?
आशा का 'माँ' से 'मैं' तक का सफ़र छोटा नहीं था। पूरी ज़िंदगी बीत गयी थी खुद के अन्दर के 'मैं' को पहचान दिलवाने में, अपने अस्तित्व को तलाशने में।
इस सुंदर से पत्र के माध्यम से एक बाईसा दूसरी बाईसा से अपने दिल की बात साझा करना चाह रही हैं, अब उम्मीद है बस एक दुसरे को समझने की!
कभी लगाव था पर आज सिर्फ एक गहना, साफ़ हो सकती है ये परत लेकिन, फिर आएगी जब जब आवाज़ उठाएगी, क्या मूक मुर्दा बन जिंदा रह पायेगी?
बच्चे माता-पिता को मापदंड मानकर अपनी आदतों को मोड़ देते हैं तो उनको अच्छी आदतें सीखाना और स्वयं उन पर अमल करना हमारे दायित्वों की लिस्ट में शामिल हो जाता है।
तन्हाइयां अच्छी लगती हैं मुझे..सच! मेरी कमियों को मैं और समझ पाती हूँ, हर उस ख़ुद से तन्हा मुलाकात में कुछ नया सीख जाती हूँ - श्वेता व्यास
कभी आओ बैठो इन सरगोशियों में, बातें ढेर सारी करनी हैं तुमसे, छोड़ आओ अपना ये फ़हम कहीं दूर, कि अब कुछ पल तुम्हारा साथ ये दिल पाना चाहता है।
ज़रूरी नहीं हथियारों से ही लड़ा जाए, अपने घर से देश के लिए लड़ती आयी थी, हां! यही देशभक्ति कहलाई थी। हां! वो भी देशभक्ति कहलाई थी।
सबको साथ लेकर चलने की कोशिश और मानवता, कुछ तो मापदंड होंगे, जो मान भी लिए जाएँ, तो लकी या अनलकी होने की श्रेणी में डालते होंगे, पैसे की बरकत नहीं।
मेरी पहली 'ना' आज भी उत्पन्न कर देती है ज़लज़ला, पर माफ़ कीजियेगा यूँ ही चलता रहेगा 'ना' का ये सिलसिला।
मैंने इन 5 बातें पर गौर किया और बदलते वक्त का तक़ाज़ा कहता है, जो बातें हमें हमारी मां ने सिखाईं, वो हमारे बच्चों को, सिखाना पर्याप्त नहीं होगा।
रक्षक के भेष छुपे भक्षक बोलो, "क्या है मेरा जो मुझे जननी कहते हो, जन्म मेरा ही बाकी अब तक, स्वयं चुभा तीर, रहेगा रक्षक का आडंबर कब तक?"
जो पति अपनी पत्नी को उचित सम्मान और प्यार ना दे, वो उसी दंड का पात्र हो, उसी अवहेलना का पात्र हो, जिसकी खरा ना उतारने पर, औरत होती है।
कमज़ोर होना जितना गलत नहीं उतना ख़ुद को कमज़ोर मान लेना है। जान देने का सौभाग्य मिले ना मिले, आवाज़ उठाने का हौसला खोना नहीं चाहिए।
तलाश है मुझे अपने आप की - अब बहुत हुई जंग, छोड़ो मेरा दामन, हट जाओ परे, सबसे, मेरे ख्याल और मेरा ज़हन से।
"गरीब हैं। लेकिन, इतना समझते हैं, गलत को सहते जाएंगे तो हमेशा सहते ही रहेंगे।" #Me Too का सही अर्थ शमा ने आज मेरे को सिखाया।
नकारात्मक लोगों की प्रजाति हमें हमारे ही बीच मिलती है, पड़ोस में, ऑफिस में, रिश्तेदारों में, दोस्तों में, मुश्किल ये है कि इन्हें पहचाना कैसे जाए?
पता नहीं कितनी कहानियाँ... बढ़ती उम्र के साथ घटती उम्मीदों की। बड़े से घरों में बढ़ती दूरियों की। कितने उधड़ते-बुनते रिश्तों से बना था ये 'आशालय'।
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