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मंदिरा बेदी ने जींस-टी शर्ट क्यों पहनी? क्या उन्हें नहीं पता साड़ी या सलवार सूट इस समय बेस्ट ड्रेस होती। कपड़े ही तो संस्कार की निशानी हैं...
मैं तीन महीने की हो चली थी और माँ की आवाज़ पहचान कर खिलखिलाने लगी थी, जब मैंने अपने पिता के प्रथम स्पर्श को पाया।
शादी के बाद ज्यादातर परिवारों में बहुओं को हमेशा छोटी-छोटी बातों में गिल्टी फील करवाया जाता है। क्या हुआ अगर घर की बहू सबके जागने के बाद जगी?
सुहागरात में रजनीगंधा और गुलाब से सजी सेज पर घुंघट निकाले मैं अपने पिया का इंतजार कर रही थी। मुझे ऐसा लगा कि कोई मुझे सुन रहा है।
बहुत बड़ी शरलाॅक होम्स बनी हो? किसी को बताने की जरूरत नहीं। घर के आदमी जाकर लड़ेंगे तो नाम तो तेरा ही आएगा और तेरी बदनामी होगी। बस चुपचाप रहो!
जब भूमिका ने थप्पड़ मारा, निति ने रोते-रोते अपने गले में भूमिका का दुपट्टा लपेट लिया, विवेक ने समय रहते देख लिया इसलिए अनहोनी होने से बच गई।
एक तरफ तो रजस्वला स्त्री को अपवित्र माना जाता है वहीं दूसरी ओर शक्ति की प्रतीक मां कामाख्या देवी को रजस्वला होने के दौरान पवित्र मानकर पूजा जाता है?
आज बहुत दिनों बाद अच्छी नींद आई क्यूंकि आज मैं सुबह का अलार्म बंद करके सोई थी और मैं अब वापस पीछे मुड़ने के मूड में बिल्कुल नहीं थी।
कोविड-19 या कोरोना क्या है? हमें इससे डरना नहीं है, बल्कि कुछ नियमों का पालन करके ख़ुद को और अपने परिवार को इसके कहर से सुरक्षित रखना है।
20 मार्च वर्ल्ड स्पैरो डे के रूप में मनाया जाता हैं। इन नन्हे पक्षियों का हमारे जीवन में बहुत बड़ा योगदान है। यह एक लेख उनके नाम।
नहीं बनना देवी, ना तो दिन खास चाहिए, आधी दुनिया को जीने का अहसास चाहिए, 'दिन बराबरी वाला' नहीं चाहते हैं हम, 'हर दिन बराबरी का' क्या दे पाओगे तुम?
अपने प्रियजनों को भरोसा दिलाएं हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारी सफलता असफलताओं से हमारे प्यार में कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, तुम्हारी जिंदगी हमारे लिए अनमोल है।
पहले प्रयास के अगर मार्क्स मिलते तो मेरे नंबर नेगेटिव में आते। भगवान जी ने कोई ऐसी संरचना और इंसान ने कोई ऐसा नक्शा नहीं बनाया जैसा मेरी रोटी का आकार।
आज भी हमारी आज़ादी के लिए सीमा पर सैकड़ों फौजी शहीद हो रहे हैं और हमारे बच्चों को इस आज़ादी का मतलब और कीमत नहीं पता।
ये वो लोग हैं जो अपनी कायरता छुपाने के लिए, बच्चे तुम्हें ही गलत साबित करेंगे। किसी एक्सीडेंट को देखकर मोबाइल में विडियो बनाएंगे। फिर बातें बनाएंगे।
जब भी मेरा दिल धड़का, जब भी मैं कमज़ोर पड़ी, तुमने अपने नन्हे-नन्हे हाथ-पाँव से मुझे एहसास दिलाया, 'माँ, मैं तुम्हारे पास आऊँगा। माँ मैं ठीक हूँ!'
क्या होगा ऑल-राउंडर बनकर? कुछ मेडल्स और सर्टिफ़िकेट में इज़ाफ़ा और माँ-बाप की नाक थोड़ी सी ऊंची हो जाएगी? बस इतना ही!
काश! मुझे भी नहीं मिलती कोई विरासत। काश! मेरे शरीर से न लिपटी होती पिता, पति की इज़्ज़त।
इतनी बार अस्विकृत होने के बाद यह तो समझ ही चुकी थी कि झूठ है कि संबंध ईश्वरीय वरदान से बनते हैं।
एक पुरुष, स्त्री के बिना अधुरा है, और स्त्री को भी पुरुष की आवश्यकता है। सशक्तिकरण का मतलब, चाहे पुरुष हो या स्त्री, किसी भी सन्दर्भ में, अकेले चलना नहीं।
शास्त्रों में भी कहा गया है कि इंसान किसी भी ऋण को चुका सकता है पर मातृ-पितृ ऋण से उऋण नहीं हो सकता। फिर ऐसे रिवाज कैसे बने?
दो बार पहले भी यही सवाल-जवाब हुए थे और दहेज पर सहमति ना बनने के बाद उसे काव्य-गोष्ठिओं में रात बिताने वाली 'चरित्रहीन' का तमगा दिया गया था।
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