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कोरोना महामारी से सबके हाल बुरे हैं,पूरा विश्व परेशानीओं का सामना कर रहा है। मगर लोग अपना समय व्यतीत करने क लिए अच्छे अच्छे विकल्प ढूंढ रहे हैं और आनंद उठा रहे हैं।
श्रृंगार को जहां कुछ लोग सौभाग्य वर्धक समझते हैं, वहीं कुछ लोग इसे सौंदर्य वर्धक भी मानते है और इतिहास इसे खुशियों का प्रतीक भी मानता है।
अपना सब कुछ छोड़ने के बावजूद उसे दो मीठे बोल भी नहीं मिल पाते, अपने सपनों, अपनी सब इच्छाओं को खुशी-खुशी त्यागने के लिये वह तैयार हो जाती है। आखिर क्यूँ?
बोलने में हिंदी होता है ख़ुद पे गर्व, सीखने में हिंदी करती हूं फक्र। हिंदी मेरी है संस्कृति, हिंदी मेरी है विरासत। हिंदी है मेरी आन, हिंदी है मेरी शान।
मुश्किल राहें होती हैं पर नामुमकिन कुछ भी नहीं होता, सब कुछ न कुछ सिखलाते हैं, बुरे समय से जो हमें उबारे, अच्छे शिक्षक कहलाते हैं वो।
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