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रिश्तेदारों की भीड़ धीरे-धीरे कम हो गई सब अपने घरों को प्रस्थान जो कर गए थे। अब होने लगी सुनैना की वास्तविकता से पहचान।
बचपन की वो बात याद आती है जब हम स्कूल जाते थे तब अध्यापक हमे सच का महत्त्व समझाते थे। लेकिन अब सच के मायने बदल गए हैं।
बस अब तो यही दुआ करती हूं कि यह कठिन समय हम सबकी ज़िन्दगी से चला जाए। साथ ही यह गुज़ारिश करूंगी कि हम सब उतने में ही गुज़र बसर करें जितनी ज़रूरत हो।
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