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Blogger [simlicity innocence in a blog ], M.Sc. [zoology ] B.Ed. [Bangalore Karnataka ]
कभी कभी प्रेम की पीड़ा की अतिश्योक्ति शरीर के कुँज कुँज में एक व्याकुलता की लहर को सुशोभित करती है, मगर मन व्याकुल रहता है और विरह की अग्नि में तपने लगता है।
जीवन में हमको किसी न किसी का सतह तो ज़रूर चाहिए, पर वो यार हो या इश्क़ होना बिलकुल बेज़ार चाहिए, बिलकुल शफ्फाफ़ बिल्कुल पानी की तरह।
जीवन की मुस्कान देखो और आगे की ओर बढ़ते जाओ, खुद को विपरीत स्तिथिओं में व्यर्थ न करो, दृढ़ निश्चय से आगे बढ़ते जाओ।
अक्सर बारिश के दौरान अपने प्रिय से मिलने की लालसा बढ़ जाती है, बारिश अगर रात के वक़्त हो तो इश्क़ की सौंधी सी महक और फ़ैल जाती है।
मन की अभिलाषा को कभी मरने मत दो और साथ के साथ अपनों को भी सिखाओ के हर रात की सुबह ज़रूर होती है, हर अँधेरे के बाद उजाला होना स्वाभाविक है।
कुछ अरमां जो हम उठते -बैठते, चलते-फिरते संजोते रहे, कुछ बातें जो ज़ुबाँ न कह सकी, कुछ कहे-अनकहे शब्दों को बेझिझक, हमने बयाँ कर दिया।
कहीं ओझल सा हो गया तेरा आत्मविश्वास अब दूसरों की उपेक्षा एवं अपेक्षाओं का बसेरा छोड़, छोड़ दे जीना दिखावटी, आज सिर्फ खुद से प्यार कर...
मन की भाषा कभी किसी को समझ नहीं आती क्युंकि मन कभी तो विचलित होता है और कभी शांत और सारे कायाकल्प मन की भावना पर ही निर्भर होते हैं।
देश की बागडोर हमारे राजनीतिज्ञ लोगों क हाथ में नहीं बल्कि देश के उन सपूतों क हाथ में हैं जो देश को बचने क लिए बॉर्डर पर अपनी जान की बाज़ी लगा देते हैं।
जीवन चलचित्र की भाँती ही चल रहा है और धीरे धीरे समाप्त हो रहा है। जीवन को जी भर क जिओ और हार नहीं माननी चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो।
खुद को अडिग कर दो और जीवन में जीने की लालसा पैदा कर के आगे बढ़ने की सोचो। जीवन आपको खुद आपकी मंज़िल तक पहुंचाएगा।
देश के रखवाले और देश की ड्योढ़ी पर दुश्मन के दाँतों की खट्टे करने वाले देश के वीर सपूतों को ह्रदय के हर कोने से सलाम
जिनको ऊंचाइयों पर पहुँचना है, उनको वहां पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता है...
ईश्वर रूपी नन्ही सी जान ने, बेटी बनकर दुनिया में तिरस्कार ही तो पाया। क्यों तुम भूल गए? तुम्हें भी तो किसी बेटी ने जना है!
कई बार अपनी मंज़िल पर चलते-चलते कुछ हिम्मत हारने लगें यो याद रखें कि 'चल पड़े हैं लम्बे सफर पे, तो पहुँचेंगे भी, राह में मोड़ अनेक हैं, पर मंजिल तो एक है'...
खड़ा तो मुझे खुद ही होना था, बस थोड़ी देर कर दी, पर अब जब खड़ी हो गई हूँ, तो फिर अब बैठना नहीं है, अभी-अभी तो चलना सीखा है, अभी तो पूरी ज़िंदगी बाकी है!
ये तो बस मेरे शब्दों की गूँज थी, मौका मिले तो, कभी सुनाऊँगी, अपनी आवाज़ की खनक को, मैं तो बस यूँ ही लिख देती हूँ, मेरे लेखन में भी एक सबक है!
नारी की शक्ति पहचानें और उसको अब अबला कहना छोड़ दें क्यूंकि जब तक सब उसे अबला कहेंगे, तब उसको कमज़ोर समझ कर उस पर अत्याचार होते रहेंगे।
हर कहानी समय अनुसार बदलती है और यही होना है अब नारी की कहानी के साथ, सदियों से चली आ रही इस कहानी को अब अपना रूप बदलना ही होगा!
मैं ही तो वह कुंजी हूँ, जो घर आँगन महकाऊँ, पर मेरे भी, कुछ सपने हैं, जिनका तुम सम्मान करो, सिर्फ औरत ही क्यों करे समर्पण, तुम भी कुछ योग्यदान दो।
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