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माँ के मुस्कुराते ही मुस्कुरा उठती हैं सूखे वृक्षों की सभी शाखाएं! माँ की नींद पर सदैव भारी पड़ती है पिता की अनुपस्थिती!
कामकाजी हो, हर वक्त चलती नहीं क्यों, बड़े शहर और ओहदे पर आकर, बिंदी तजती नहीं क्यों, हाय, तुम्हारी आंखों से लाज का काजल बहता जाए, क्यों।
उस लड़की का चेहरा तो नहीं दिखा, पर सफ़ेद सलवार सूट में खुले लंबे बालों में खड़ी वह उसका ध्यान खींचती रही।
क्या खूब लगती हैं शादियों वाली रातें, जब रौशनी पटाखों से होती है, दुल्हन को अंगारों से जलाकर नहीं।
एक बार तो तुमने नज़रें भी मिलायीं, चाहत को यकीन हो गया, उन्हें हमसे प्यार है पर बहुत भीतरघुन्ना है तुम्हारा प्यार, खुलकर कुछ बोलता ही नहीं।
जो औरों के बारे में सोच कर खुद की परवाह करना छोड़ दो, तो खुद की नजर से नजर कैसे मिला पाओगे अब।
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