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कम्युनिटी प्रस्तुत
हिंदी साहित्य के साथ मेरा अनुभव…

लॉक डाउन के दौरान मैं बहुत से साहित्य प्रेमी जनों के संपर्क में आई और अनेक हिंदी लेखकों, कवियों व साहित्यकारों को जानने का अवसर मिला। 

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दादी का चश्मा

सीमा को भी समझ आ गया कि बच्चे सब कुछ ध्यान से देखते हैं। बच्चों को ग़लत सही का भेद समझ में आता है।

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स्त्री भी बस एक इन्सान है!

सच्चा मान और सम्मान इसी में है कि उच्च-निम्न का भेद न हों, स्त्री भी बस एक इन्सान है। कुछ फर्क नहीं है हम में, जब रचने वाला एक ही है।

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अल्हड़पन की दोस्ती

सच कहूं तो आज उसकी इस बात पर मन में झिझक भी होती है, मुंहफट तो होते थे, मगर दिल का साफ भी तो थें, एक ख़ास दोस्त हम सबके पास होता था।

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एक और इंसानियत को शर्मसार करता हुआ वृत्तांत…

किसी ने एक बार भी ये जानने की कोशिश भी नहीं करी कि क्या आरोपी पहले से शादीशुदा है? अगर वो शादीशुदा होता तो क्या होता?  

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औरत का संघर्ष…

किराएदार है तू इस बगिया की, हक नहीं है इस बगिया में तेरा। किसी और के घर को जाकर महकाना, और वहां भी अपने नाम को भूल जाना।

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