कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
सुनो, तुम न, गोल बिंदी लगाया करो - बिंदी में बसे प्रेम की उपस्थिति किसी भी रंग, रूप, स्थान और परिस्थिति की मोहताज नहीं होती!
बचपन की याद में छुपी चली आई, वो छुपम छुपाई वो पकड़म पकड़ाई, गिल्लियों की आवाजें, पतंगों की उड़ानें, बहुत याद आता है बचपन सुहाना।
मेरी तबाही और मौत पर, मोमबत्ती जलाना अब छोड़ दो, थक गयी मै आंसू बहा कर, तुम जुलुस का रुख मोड़ लो। कोख में मार डालो अब क्यूंकी...
देवी स्वरुपा बताकर उसको, सदियों से हरता आया मानव, नारी तेरी यही नियति, तुझसे जन्म पाकर तेरा ही शोषण करता, वह संस्कारी नहीं है...
रंग बहुत हैं, वो हैं तो हम हैं। वो हमारे बूद बाघ की मालन, उसने मोहब्बतों से गुलिस्ताँ बनायी, वो मासूम उनकी अदाएं, वो मासूम दिलनशी होती हैं।
असली महिला सशक्तिकरण तभी होगा, जब यह समाज हर लड़की को, अपने बारे में फैसला करने का, बराबरी का सम्मान और हक देगा।
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!
Please enter your email address