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कम्युनिटी प्रस्तुत
बिंदी!

सुनो, तुम न, गोल बिंदी लगाया करो - बिंदी में बसे प्रेम की उपस्थिति किसी भी रंग, रूप, स्थान और परिस्थिति की मोहताज नहीं होती!

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बचपन के वो दिन…

बचपन की याद में छुपी चली आई, वो छुपम छुपाई वो पकड़म पकड़ाई, गिल्लियों की आवाजें, पतंगों की उड़ानें, बहुत याद आता है बचपन सुहाना।

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एक बेटी की ज़ुबानी!

मेरी तबाही और मौत पर, मोमबत्ती जलाना अब छोड़ दो, थक गयी मै आंसू बहा कर, तुम जुलुस का रुख मोड़ लो। कोख में मार डालो अब क्यूंकी...

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वह संस्कारी नहीं है…

देवी स्वरुपा बताकर उसको, सदियों से हरता आया मानव, नारी तेरी यही नियति, तुझसे जन्म पाकर तेरा ही शोषण करता, वह संस्कारी नहीं है...

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कुदरत का अनमोल शाहकार औरत…

रंग बहुत हैं, वो हैं तो हम हैं। वो हमारे बूद बाघ की मालन, उसने मोहब्बतों से गुलिस्ताँ बनायी, वो मासूम उनकी अदाएं, वो मासूम दिलनशी होती हैं।

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महिला सशक्तिकरण की सच्चाई…

असली महिला सशक्तिकरण तभी होगा, जब यह समाज हर लड़की को, अपने बारे में फैसला करने का, बराबरी का सम्मान और हक देगा।

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