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कम्युनिटी प्रस्तुत
एक निवाला प्यार का

भूख का रंग और दर्द का रंग, क्या हर जगह अलग सा दिखता है? उम्मीद का रंग और आस्था का रंग, क्या हर ज़मीन पर अलग सा बिखरता है?

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शाम होते ही मां तेरी याद आई…

क्षितिज में डूबता सूरज देख, शाम होते ही मां तेरी याद आई। अपलक निहारती रहूं तुझे मां, दिल में छटपटाहट सी आई। शाम होते मां तेरी याद आई...

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हां बेटी हूँ, बेटी कहो!

कहते हैं अपना सिक्का खोटा तो परखने वाले का दोष नहीं, शर्मिंदा ना समझें खुद को बेटी पा कर, ये बात हर बेटी को समझनी चाहिए...

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मुमकिन है मेरा बहक जाना…

ज़िन्दगी को; करीब से आज जाना, क्या खूब अहसास है, जो कब से था अनजाना, यूंही खुशी का झलकना, और हवा का गुदगुदाना, ए दिल संभाल मुझे...

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मेरी अभिव्यक्ति पर लगा पाबंदी…

तुम्हें अपनी हार का पहले से है अंदेशा, पर मुझे अपनी जीत का, हमेशा से है भरोसा। देखे! कब तक पाबंदियों की बेड़ियां रोक पाएंगी...

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अगर बेटियां घर में ना होंगी…

कभी कदम-कदम रोके, कभी कतर दिए पँख उनके, मासूम के ख्वाब आखिर चुभते हैं आँखों में किनके। नन्हीं-नन्हीं ख्वाहिशें आसमाँ में उड़...

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