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कम्युनिटी प्रस्तुत
और वह आज़ाद हो गई…

गौरी ने अपनी बेटी को कभी अपना दर्द ना बताया था, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि बेटी की खुशियों में मां के दर्द का साया भी पडे़।

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मेरी अधूरी ख्वाहिशें

कासे कहूं अपनी ये बात, सांवरे ना हो सके मोरे आज, बंसी की धुन से जगाई जो आस, रह गई बस सांस में वो आस। कर दो इस जोगन की पूरी अरदास...

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पुरुषों की इस दुनिया में, कठपुतली सी मैं…

पुरुष प्रधान दुनिया में, ना आवाज़, ना कोई साज़, ना मेरा वजूद, ना अस्तित्व, तोड़-मरोड़ के जीवन जीती, आधे-अधूरे सपने सीती, कठपुतली सी मैं।

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कल सपने में क्या गजब हुआ…

कल सपने में क्या गजब हुआ, दो गज का घूंघट निकाल, पनघट पर जा रही लड़कों की टोलियां, उनकी बदलती चाल देखकर, चुटकी ले रही, ताश खेलते बुढ़िया।

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उलझी-सुलझी सी कुछ लड़कियाँ…

सपने देखा करती हैं कुछ लड़कियाँ, आसमान को बढ़तीं सीध अपनी नज़र लगा, कभी धरा पर धरी समतल, उलझी सुलझी सी कुछ लड़कियाँ।

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चाहे बंदिशें हों कितनी भी…

चाहे बंदिशें हों कितनी भी, देख लेना एक दिन, अपना आसमाँ मैं खुद चुनुँगी, मेरे पँख विश्वास है मेरा, ऊँची बहुत उड़ान उडूँगी।

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