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आवर्ती ज़ब बढ़ती गयी दिनों दिन इस खेल की, मैं घबराती, मैं सकुचाती, सोच कर उनसे मेल की, ना हो बचपन किसी का इस काली छाया से दूषित...
ना हम रूठेंगे उनसे, ना वो हमें मनाएंगे। इश्क़ मेरा है यारा, भला वो क्यों निभाएंगे। ना हम जाएंगे पास, ना वो मुझे अपनाएंगे।
लड़कियाँ चिड़ियों की तरह होती हैं, चहचहाती, फुदकती हुई सी। मगर किसी जाल में फंसते ही भूल जाती हैं फुदकना, और चहचहाना भी...
चाहे दूर रहे या पास, पर दिल तो सबके है साथ। जैसे बूँद-बूँद से बनता सागर, वैसे ही रिश्तों से बनता परिवार। आखिर परिवार है तो हम हैं...
अगर आने दोगे अपनी सीरत को कभी सूरत पर तो इस ज़िंदगी का सच्चा सुकून पाओगे। पल भर के लिए ही सही पर खुली हवा की तुमको भी ज़रूरत है।
मानो जैसे मोहब्बत की हवा में सिमटकर, भरोसे के तेरे माँझे से लिपटकर, मेरी ज़िंदगी की पतंग, तेरे अंगना के आसमाँ में उड़ने चली है।
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