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एक आखरी कदम से पहले, उस पहले कदम को संभाल लेना। एक बार, बस एक बार, मुड़ के ज़रूर देख लेना। बस एक बार पुकार कर देख लेना...
राम को पता था सीता निर्दोष है, फिर भी सीता वन को गई। ये सब किस्मत का खेल है भाई, इस पर बस किसी का चलता नहीं।
रिश्तों की डोर को बनाए रखने के लिए मन को शांत रखना होता है। खुद की पहचान छिपाए रखना होता है। रिश्तों के लिए खुद से बेईमान होना पड़ता है।
अगर बेटी कहे, "माँ मुझे किसी ने छुआ, मुझे कुछ अजीब सा हुआ", तब उसको बातों में हम ना बहलाएँ। सही-गलत उसे का फर्क समझाएँ।
जब लगी पुकारने उन समाज के ठेकेदारों को, तो लेकर लेखा जोखा उसके आज़ाद खयालों का, तो करने लगा हिसाब समाज उसके फटे चीथड़ों का।
तुम खुलकर अपनी तड़पन को मुझसे कहना, मेरा वादा है सखी हम न सिर्फ मिलकर राह निकालेंगे। बल्कि अब उस ज़िन्दगी को भी संवारेंगे।
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