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कभी इंद्रधनुष सी बैंगनी, कभी सूरज सा पीला रंग, कभी नभ सा आसमानी और कभी डूबते भानु की अरुणिमा के संग। सवाल है, कैसे, क्यों, किसलिए पनप गयी?
कब होता है दिन, कब ढल जाती है शाम,अब इस बात की भी सुध बुध भी ना रही, हमेशा टिप टॉप रहने वाली मैं भी अब महीनों से पार्लर नहीं गई।
मानवाधिकारों की सुरक्षा, पालन और जागरूकता केवल संयुक्त राष्ट्र संघ का कर्तव्य नहीं है ब्लकि हर व्यक्ति, संस्था व समाज की जिम्मेदारी है।
तोरबाज़ एक बेहद गंभीर विषय पर कही गई कहानी है जो संजय दत्त के अभिनय और कुछ बच्चों के मासूम कंधों पर टिकी हुई बोझिल सी फिल्म है।
मोहम्मद अकबर के बहीखाते में कई बातें इतिहास में दर्ज की जाती हैं, जो उसके दौर में महिलाओं के हक में मील का पत्थर कही जाती थीं।
बार बार वार करता है उसकी मासूमियत पर कभी गालों पर तो कभी हाथों पर कभी चेहरे पर तो कभी आँखों पर इंसान नहीं सामान समझ वो खुद को समझे भाग्यविधाता।
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