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जीवन में कभी-कभी हमें अपनों के लिए ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं क्योंकि हम उनके लिए दुनिया में आए हैं। यही सकारात्मक सोच ही तो हमें अपनों के नज़दीक लाती है।
किसी ने दालान में,किसी ने छत पर ढूंढा और किसी ने बालकनी में। जिसने जहां ढूंढा उसे वो वहीं मिलती रही। हर घर में बसी वो औरतखुद में रोज गुमती रही।
कहती कलम किसी जगह पर रुक के गड़ी रह गयी कुछ पल। वहाँ गहरा बिंदु है, पल जो लिखने में पीड़ा करते समय जब किसी अधूरी बात से वही दम तोड़ रहे है।
सारे ताने सुनते हुए वो बड़ी होती गयी और आगे बढ़ती गयी ये सारे ताने उसे और मजबूत करते गए। देखते देखते उसने अपनी स्कूलिंग पूरी कर ली।
वो जानती है कि तन से जख्मों के निशान मिटा नहीं करते, पर मन पे पड़े ज़ख्मों के निशान शायद अकूट प्रेम, समर्पण, पश्चाताप के एहसास और वक्त मिलकर पोंछ देते हों।
आंसू जैसे सूख गए हैं। न्याय का तो दूर-दूर तक कोई अता पता नहीं। बस सब कुछ जैसे समाचार बनके रह गया है जिसे सिर्फ एक कान से सुनना है और दूसरे कान से निकाल देना है।
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