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अधर स्वतंत्र नहीं होते कहने को है तत्पर..बातें रह जाती है छिपी..उंगलियां तो माध्यम मात्र है मेरे अंतर्मन की..शब्द है हृदयलिपि..
मैं सचमुच कुछ नहीं करती। बस अपना तन-मन जीवन झोंक देती हूँ। यही सुनने को, कि दिनभर क्या करती हूँ।
टुकड़े टुकड़े में ही सही, सब कुछ तुम्हारे लिए ही व्यवस्थित किया है वैसे तो थोड़ा कम है लेकिन सब कुछ तेरे लिए सजा के रखा है।
कभी- कभी दम घुटता है इन ऊंची- ऊंची दीवारों में। खुली हवा भी कैसे खाऊंहैवान बैठे है सडक़ों के किनारों में।
नवाज़उद्दीन और पंकज त्रिपाठी की अनवर का अजब किस्सा एक प्रयोगधर्मी फिल्म है जिसमें डार्क कांमेडी भी है, थोड़ी सी जासूसी भी है और रोमांस भी...
ज़रूरी नहीं मैं बोझ ही बनूँ, बोझ उठाने का ज़रिया भी तो बन सकती हूँ,मुझे एक मौक़ा तो दो,मुझे दुनिया में आने तो दो|
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