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कम्युनिटी प्रस्तुत
आज के परिदृश्य में यथार्थ प्रेम

प्रेम तो गुस्से , नाराजगी, खामोशी हर रूप में है, लेकिन शर्त यह है कि समझने वाले इंसान  नहीं हैं, क्योंकि लोग प्रेम को भी दिखावें का पर्याय मानने लगे है।

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हमें भी आया गीतों का बुलावा!

और आँखों ही आँखों में तय कर लेती हैं, अपनी-अपनी भूमिकाएं, नाचने, बजाने, गाने और बात-बेबात पर कहकहे लगाने की!

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हाँ मैं एक औरत हूँ और औरत होने पर गर्व है मुझे

औरत कमजोर नहीं है वो लोगों की बातों से अपने को कमजोर समझती है, जो एक नये जीवन को दुनिया में ला सकती है वो कुछ भी करने की ताक़त रखती है। 

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माना कि अभी मैं पूर्ण नहीं…

जो आज मुझे नहीं समझे, उनसे मैं क्या उम्मीद करूँ, मूरत मैं अभी अधूरी हूँ, पूरी होने की आस लिए। 

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करवा चौथ है आज भी मेरे लिए ख़ास…

ज़िंदगी की उलझनों से ठहरकर फिर याद दिलाना, हम एक दूसरे के लिए बहुत ख़ास, इस दिन के बहाने ही सही, एक बार फिर अपने प्यार को पुलकित करते हैं...

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हमेशा मेरे बच्चों को खुश रखना!

जब भी जरूरत होगी एक आवाज़ देना तुम्हारा ये भाई हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा मिलेगा, मरते दम तक...

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