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एक बूंद चिंगारी की, एक बूंद नफरत की, ढहलादे महलों के भी निवास, क्यों न दूरी दिलों की मिटाये?जो हो मानव का परम उल्लास।
समाज से अलग उनकी भावनाओं को भी जगह देते हैं, किसी का परिवार बनकर भी त्योहार मनाते हैं, तो किसी के अंधेरे घर को दीयों संग रोशन करते हैं...
कुछ सवाल तेरे भी हैं और मेरे भी, इन उलझे सवालों का जवाब, ढूंढने निकले हैं हम किनारों पर, शायद समुंदर में चलती किश्तियों से...
नारी का अस्तित्व क्या है? जैसे धरती और हवा। धरती बौती पेड़ वक्ष पर, तब ही मिलती शुद्ध हवा। मोल नहीं फिर उस धरती का,
जग तारूं, उद्धार करूँ,दया भाव से, सबको निवारूँ,न अपना कोई न बेगाना,बिन स्वार्थ सबका कल्याण करूँ,कल्याणी सी भव्यता हो मुझमें।
हिन्दी हमारी भाषा है, गर्व से इसे अपनाएँगें। कठिन, कठोर है हिन्दी, यह भ्रम हम मिटाएंगे...कठिन, कठोर है हिन्दी, यह भ्रम हम मिटाएंगे...
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