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कम्युनिटी प्रस्तुत
‘नींद क्यों नहीं आती है रातभर’, इस सवाल के जवाब है पर काम कोई नहीं करते…

व्यक्तिगत रूप से मैंने यह महसूस किया है कि कई बार बहुत थकान होने पर भी नींद नहीं आती है तो कई बार थकान नहीं होने पर भी नींद नहीं आती है।

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क्यों मेरा लड़की होना समाज के लिए अभिशाप है?

मैं जानना चाहती हूं कि हमारे समाज में जहां माता रानी का स्वागत धूम-धाम से होता है, वहां बेटियों का आना मातम क्यों बन जाता है?

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अब बस! उन निशानों से मुक्ति मिल गयी थी…

अब नील के निशान नहीं दिखते थे भाभी के बदन पर,  दिखती थी तो वही सौम्य मुस्कुराहट जो पाँच साल पहले देखी थी मैंने उनके चेहरे पर...

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अब बस! मुझे चाहिए घरेलू हिंसा से छुटकारा…

समाज के नज़रिये को अपनाने का अर्थ था, अपने आत्म सम्मान का बलिदान। जो कि उसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था। अब बस और सहन नहीं करना है...

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अब बस! पहले अपने बेटों को औरतों की इज्ज़त करना सिखाइये…

अब बस हमे अपनी बेटियों को इतना मजबूत बनाना चाहिए कि ऐसे लोगों का डट के सामना कर सके और निसंकोच अपने परिवार को बता सके...

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अब बस! अपने लिए आवाज़ तुमको ही उठानी है…

कई लड़कियां हैं जो अपने ऊपर हुए अत्याचार पर आवाज नहीं उठाती, समाज क्या कहेगा सोचकर। लेकिन समय को बदलना होगा, अब बस हो चुका है। 

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