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इस सीरीज में इन तीनो महत्वकांक्षी व्यापारियों की कहानी इतना तो बता देती है कि भारत के लोगों के पास वह तमाम सम्भावनाएं मौजूद है।
माँ दुर्गा को शक्ति रूपिणी मानते, नारी को तो अबला बोलते। कन्या पूजन करते लेकिन, बेटी को तो नहीं चाहते। फिर ये कैसी पूजा है?
सुबह से रात तक पूरे घर में चक्कर घिन्नी की तरह घूम जाती हूँ, सब को गर्म खाना खिला कर, खुद ठंडा खाती हूँ, पर मैं कुछ नहीं करती।
ख्वाबों को तेरे जी कर मैं तुझे ज़िंदा रखूँगी, थक गई जो तू लड़ते लड़ते, तेरे ख़ातिर लड़ूँगी मैं। आने दे इस दुनिया में तू मैय्या मुँह न फ़ेर...
बचपन की वो बात याद आती है जब हम स्कूल जाते थे तब अध्यापक हमे सच का महत्त्व समझाते थे। लेकिन अब सच के मायने बदल गए हैं।
सुकून से जीने की तमन्ना में, डर के जीने का तरीका सीख लिया हो अब जैसे! प्यार की तलाश में मानो, अब भरोसा करना छोड़ दिया हो सब पर!
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