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बस अब तो यही दुआ करती हूं कि यह कठिन समय हम सबकी ज़िन्दगी से चला जाए। साथ ही यह गुज़ारिश करूंगी कि हम सब उतने में ही गुज़र बसर करें जितनी ज़रूरत हो।
मेरे सपनो की उड़ान को पंख लगाकर, ज़िन्दगी का सही मतलब समझाया, तेरे हर संघर्ष का शुक्रिया कुछ बनकर करना चाहती हूं, तेरे हर बलिदान को गर्व महसूस करा ना चाहती हूं!
छोटे छोटे बर्तनों में निरा प्रेम पका, थालियों में परोस देना भूख के साथ, मैंने सीखा है स्त्री होना, अपनी माँ से सानिध्य में।
सच यही है, एक दिन सबको जाना है। फिर क्यों करते हो मेरा तेरा, सब खेल ऊपर वाले का है। एक दिन संसार से सबको, अलविदा कह जाना है...
शहरीकरण के इस दौर में शहरी बनने की होड़ में मैंने और सुधांशु ने अपने बच्चों को अपनी भाषा की विरासत ना दे कर एक विदेशी भाषा का आकर्षण दिया था।
मैं, समिधा नवीन वर्मा, आप से कहना चाहूँगी कि सम्मान सभी भाषाओं का करिए पर अपनी भाषा हिन्दी को अपनाइये, हिन्दी का महत्व समझिए इसका गौरव बढ़ाइये।
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