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जो सपने सोम के अधूरे रह गए थे वो उसने दूसरे बच्चों के पूरे करने में लगा दिया। सोम ने एक बार फिर से जिंदगी को जीना सीख लिया था।
पिताजी के कमरे में गए तो एक जीर्ण शीर्ण काया बिस्तर पर पड़ी थी। एक समय के रौबदार व्यक्तित्व के मालिक अपने पिता को इस तरह असहाय देख बिलख उठी सुधा।
स्त्री या पुरुष की यह बात नहीं! मन तो दोनों का है, पर इक ही जीवन है यह, पहले खुद, फिर दूजे को समझाना होगा। सोए मन को जगाना होगा...
जो हुआ उसके बारे में सोच सोच के अपना आज बर्बाद करने से बेहतर होगा कि अपने आने वाले कल के बारे में सोचे। शांति से सोचो तो हर समस्या का समाधान मिल जाता है।
कदम से कदम मिलाकर जब चलती हूँ पुरूष के, तब भी मर्यादा का मान बनाये रखती हूँ। नारी को कमजोर समझने की सोच को बदल कर उसकी शक्ति को पहचान दिला सकूँ।
घर की चार दिवारी से बाहर, सतरंगी सपनों भरी दुनिया है मेरी, नीले आसमान तक उड़ान है मेरी, सीमा पर तिरंगा लहराते पहचान है मेरी।
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