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कम्युनिटी प्रस्तुत
फ़िल्म अटकन-चटकन कहती है कि सपने औकात नहीं देखते हैं

अटकन-चटकन स्ट्रीट बच्चों के सपनों को हकीकत में बदलने की कहानी है जो बच्चों को संदेश देने में कामयाब साबित हुई है। 

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बरसात की एक यादगार रात…

आज मुझ पर बारिश की वो बूंदें जो टिकी थीं, बालकनी की रेलिंग से ध्यान से निहारा तो, उसमें वो सब पिछला दृश्य आँखों के सामने नाचने लगा।

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गुरू-चरणों में समर्पित

सृष्टि की हर उस चीज़, हर उस प्राणी को मेरा शत् - शत् नमन जिससे मैंने कुछ भी सीखा, चाहे वो मुझसे बड़ा हो या छोटा, हर उस गुरू के चरणों में मेरी ये पंक्तियाँ समर्पित हैं।

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माँ की मज़दूरी…

भरी दोपहरी तपती गर्मी में पसीना बहाती, कोमल तो है कमजोर नहीं, यही याद दिलाती, फिर कुछ सोच पत्थर दिल के लिए आँसू बहाती!

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माँ जब तुमने मुझे छुआ था!

तेरे अश्रुओं में खुशी की धमक, इधर भी यही तो था हाल मेरा, मेरे रोने में हंसी की थी खनक। तब निडर मेरा मन हुआ था, माँ जब तुमने मुझे छुआ था!

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हे नारी! फिर तांडव करना होगा… 

अब तो तुझे खुद के लिए लड़ना होगा, सबला बन तू, इतिहास अब तो तुझे हीं बदलना होगा, शक्ति रुप महाकाली का धर, तूझे तांडव करना होगा।

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