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तुम बीमार जब पड़ती हो, मैं कुछ नहीं संभाल पाता हूँ! बिखरे हुए, घर का हाल देखकर, मैं भी, अंदर से टूट जाता हूँ!
छोड़ दो! अब ये जताना कि तुम मेरे हो! ना जाने, कब से? सिमटा-सिमटा सा है! मन मेरा सालों से, तरसा-तरसा सा है!
सिखाया तो, बहुत कुछ था माँ ने, पर! मुझे अमल करना, नहीं आया! अपने जज़्बातों को, दिल में कैद कर, मुझे मुस्कुराना, नहीं आया!
क्यों तुम उस स्त्री के पास न फटके, जिसने अपने पति को परमेश्वर समझ, अपनी अंतिम वक्त की नीम बेहोशी में भी, दोनों हाथ जोड़कर, आखिरी बार पूजा!
हाँ! तुम मेरे कातिल हो। उस रूह के, जिसमें क्षमा थी। उस आत्मा के, जिसमें दया थी। हाँ! तुम मेरे कातिल हो।
स्वरा ने अनुराग से कहा, "मैं न कहती थी तुमसे इस तरह से सबके साथ जो आनंद है त्यौहार का वह दुनिया के किसी कोने में नहीं।"
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