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कम्युनिटी प्रस्तुत
वफा

कोई इबादत यूं ही नहीं बुझती,दीया ही झूठी हवाओं को सलाम करता है।कोई चादर वफ़ा नही करती,वक्त जब खींचतान करता है।

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आजादी

मैं जन्मदात्री, मैं ही हूँ उर्मि, और रानी चेन्नमा। मैं सहती कभी गृहप्रताड़ना, पर अब आजाद हूँ, मैं मजबूत हूँ, हूँ मैं कल्पना। मैं नारी, आजादी हमें प्यारी।

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मेरी माँ

तुम ही मुझे प्रेरणा देती हो,और तुम ही मुझे संभाली हो।तुम्हारा आशीष जो मुझे मिल जाए,सच कहता हूँ,मेरा समय तो क्या?तकदीर ही बदल जाए।

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तिरंगा मेरी आन-बान और शान

तिरंगा मेरी आन-बान और शान, ऐ वतन तेरे लिए जान मेरी कुर्बान है, तू ही मेरी है जमीं , तू ही आसमान है, तू ही मेरी है जमीं , तू ही आसमान है...

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दुःख

भोर निकलने से पहले हीअचानक छोड़ जाए जीवनसाथी। कैसे तुम उसके संस्कारो पर सवाल उठाते होसंस्कारो से बड़ा है उसका दुःख क्यों ये भूल जाते हो।

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शिकायतें

क्यों न, हम अपने शिकायती मन का मौसम बदल लें।हर नकारात्मक बात में, सकारात्मकता को ढूँढ लें।थोड़ा सा दूसरे लोगों के प्रति रहमदिल हो लें।

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