कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
कोई इबादत यूं ही नहीं बुझती,दीया ही झूठी हवाओं को सलाम करता है।कोई चादर वफ़ा नही करती,वक्त जब खींचतान करता है।
मैं जन्मदात्री, मैं ही हूँ उर्मि, और रानी चेन्नमा। मैं सहती कभी गृहप्रताड़ना, पर अब आजाद हूँ, मैं मजबूत हूँ, हूँ मैं कल्पना। मैं नारी, आजादी हमें प्यारी।
तुम ही मुझे प्रेरणा देती हो,और तुम ही मुझे संभाली हो।तुम्हारा आशीष जो मुझे मिल जाए,सच कहता हूँ,मेरा समय तो क्या?तकदीर ही बदल जाए।
तिरंगा मेरी आन-बान और शान, ऐ वतन तेरे लिए जान मेरी कुर्बान है, तू ही मेरी है जमीं , तू ही आसमान है, तू ही मेरी है जमीं , तू ही आसमान है...
भोर निकलने से पहले हीअचानक छोड़ जाए जीवनसाथी। कैसे तुम उसके संस्कारो पर सवाल उठाते होसंस्कारो से बड़ा है उसका दुःख क्यों ये भूल जाते हो।
क्यों न, हम अपने शिकायती मन का मौसम बदल लें।हर नकारात्मक बात में, सकारात्मकता को ढूँढ लें।थोड़ा सा दूसरे लोगों के प्रति रहमदिल हो लें।
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!
Please enter your email address