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अब भी मुझे जगना है उम्मीदों की मिटटी में कुछ इच्छाओं के बीज भी बोने हैं कुछ उनके फूल तोड़ने हैं फिर उनके फल भी लेने हैं।
भोर निकलने से पहले हीअचानक छोड़ जाए जीवनसाथी। कैसे तुम उसके संस्कारो पर सवाल उठाते होसंस्कारो से बड़ा है उसका दुःख क्यों ये भूल जाते हो।
ना जाने क्या जादू आता था उसकोउसकी बुलाहट मेरे दिल को छू लेती थीउसकी नज़र भर बातें, मेरे अंतर्मन में बस जाती थीं।
इतनी मेरी सामर्थ्य नहीं,कि गुरू का ऋण उतार सकूँ।बस इतना समर्थ बना देना,जो तुमसे मिला,वो बाँट सकूँ। गुरू-चरणों में नमन।
शिप्रा ने सोमेश को घूर कर देखा। गाड़ी में बेठ उसने बोला, “यह तुम क्या मोलभाव कर रहे थे काउंटर पर? शोरूम में कोई मोल-भाव करता है क्या?”
मीनाक्षी ने सखी को परेशान देख अधीर होते हुए पूछा कि, “सच सच बता सुगंधा, क्या हुआ है? तू इतनी परेशान क्यों है?”
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