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सिर्फ कन्या पूजन ही न करें वरन अपने लड़कों को सही संस्कार दें जिससे वो महिलाओं पर शासन नहीं अपितु उनकी भावनाओं का आदर करें।
माँ मूलमती के लिए रामप्रसाद बिस्मिल ने लिखा, "यदि मुझे ऐसी माता नहीं मिलती तो मैं भी अति साधारण मनुष्यों के भांति संसार चक्र में फंस कर जीवन निर्वाह करता।"
अपने बच्चों को उनके अरमानों को पूरा करने का एक मौका अवश्य दीजिए, तभी वे आत्म-निर्भर बनकर जिंदगी की परीक्षा में पूर्ण रूप से पास हो सकेंगे।
शादी, कम से कम मैंने, नहीं की बच्चे के लिए। एक महिला को अब तो यह अधिकार मिलना ही चाहिए कि वो बच्चा पैदा करे कि नहीं।
अब थक सी गई हूँ, हँसना भूल सी गई हूँ, वक़्त के दिए ज़ख़्मों पर, आज फिर मरहम तू लगा दे ना माँ।
काश, तीस साल की उम्र के बाद, हर साल मेडिकल चेकअप की भी प्लानिंग कर ली होती। पर कभी सोचा ही नहीं मेरे साथ भी कुछ बुरा होगा।
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