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यदि आज की नारी के साथ सीता, द्रौपदी और ना जाने कितनी और बोलें तो?

क्या होगा अगर अब कह दूँ, मेरे प्रश्नों के कोई उत्तर किसी के पास नहीं थे, तो जीवित दफ़ना कर मुझे देवी बना दिया! सदियाँ बीत गईं, यह इक्कीसवीं सदी है ना?

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खोने नहीं देंगे खुद को, वादा है मेरा और आपका

जैसे मेरे दिल को अंदर तक कुछ भेद दिया था। बहुत चुभन हुई, और सबके जाने के बाद आज आईने से बातें करने बैठ गई और खुद को निहारने लगी।

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थेरी गाथा-हमारे लिए कोई धर्म नहीं बना

भिक्षुओं से चौरासी नियम अधिक हमारे लिए रच कर, हे मर्द महाबोधि, आप ने भी साबित कर दिया, औरतों के लिए कभी कोई धर्म नहीं बना। 

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तुम लौट के आना-बस एक इल्तिजा है मेरी

अभी तो तुमको युद्ध कर और जग जीतना है-बस एक इल्तिजा है मेरी, सरहद के उस पार की, थोड़ी मिट्टी लेते आना। 

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मेरी पहली ‘ना’- चलता रहेगा ‘ना’ का ये सिलसिला

मेरी पहली 'ना' आज भी उत्पन्न कर देती है ज़लज़ला, पर माफ़ कीजियेगा यूँ ही चलता रहेगा 'ना' का ये सिलसिला।

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रस्सी जल गई पर बल नहीं गया

जब लड़के वाले दहेज लेते हैं तब उन्हें बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब अपनी बेटी की शादी में दहेज देना पड़ता है, तब बहुत तकलीफ होती है।

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