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अभी तीन माह ही हुए हैं शादी को। अगर तुम हर छोटी बात को तूल दोगी तो ऐसा न हो कि तुम्हारा जो डर है, वो सच्चाई बन जाए।
ये सलीका सीखाने का अचूक अस्त्र था, "चार लोग क्या कहेंगे!" वैसे, ये चार एक साथ कभी सामने नहीं आए, किन्तु लाखों लड़कियों की जीवन दशा इनकी वजह से खराब थी।
अन्याय सहना भी एक घनघोर अपराध है, जिससे हमें ही बाहर निकलना होगा, प्रकाश रूपी इस शक्ति को हमें ही अपनी पूरी ताकत से, सब जगह जगमगाते हुए फैलाना होगा।
सीन से साफ़-साफ़ पता चल रहा है कि मर्दों को औरतों का घर की चार दीवारी से बाहर निकलकर ‘मर्दों वाले' काम करना उनकी मेल ईगो को कितना खलता है।
इतनी तन्मयतापूर्वक कार्य करने के बाद भी आप संतुष्ट नहीं हैं। आपको सिर्फ काम से ही मतलब है और घरवालों को पैसा से।
पूछ रही है मंज़िल, देख रही अब भी राही का रस्ता, कितना कुछ टूट गया, फिर भी नींव नई गढ़ते हैं, बर्बादी के बाद भी सारे बुनियादी ढांचे कहाँ ढहेंगे।
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