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कंगना रनौत और रंगोली चंदेल, नाम मात्र की फ़ेमिनिस्ट?

दुःख की बात है कि कंगना रनौत आज तक जिन मुद्दों के खिलाफ रही हैं, आज खुद ही उन मुद्दों की 'पोस्टर गर्ल' बन गयी हैं।

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प्रीती सुख का स्वागत, भावों के नाद मधुर सुर ताल के साथ

दोनों की समागम भावनाओं से होगी रस बरसात, बुनियादों का कर त्याग हमें करना कुरितियों का हनन, गर तुम निभाओ साथ मेरा सुखद होगा ये नवजीवन

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अच्छा तो आप अकेले रहते हो! आखिर एक औरत कैसै रह सकती है बिना पति के?

हम औरतें ही औरतों की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं और उन्हें किसी भी बात से ताना मारने से नहीं चूकतीं। अकेली हूँ लेकिन असहाय नहीं।

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आंटी मत कहो ना, यह हमारी अपनी पहचान नहीं है

एक ग्रहणी वैसे भी बुआ, मौसी, चाची या ताई के रिश्तों में अपना नाम पहले ही कहीं पीछे छोड़ कर, स्वयं की पहचान खो देती है।

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अंतर! परंतु दोनों ही तो मानव हैं, कौन करेगा किसको तिरस्कृत

पुरूष वस्त्र उतार कर योगी बन गया और स्त्री वस्त्र उतार कर भोग्या! यह अंतर नेत्रों से दिखता है या आपके हृदय से?

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माँजी, क्या आपको अपनी बहु में एक भी अच्छाई नहीं दिखती?

सुबह हुई नहीं कि सबकी फरमाइशें शुरू हो गईं। किसी को चाय तो किसी को स्पेशल कुछ। किसी को न दीपू से मतलब और ना ही रागिनी की नौकरी से।

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