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बचपन में मुझे कभी भी पिताजी ने महंगी आइसक्रीम नहीं दी। कभी भी इतने रूपये नहीं थे। और जब थे, तब भी नहीं दिलायी।
अब हदें तोड़ने का जी करता है, मन की घुटन से बाहर निकल, दूसरों के बताए नहीं, ख़ुद के लिए, नये रास्ते ढूँढने का मन करता है।
तुम्हें अपनी खुशियों का ख्याल ख़ुद रखना होगा, तुम्हें भी अपनी चॉइस से जीने का अधिकार है। बहुत प्यार लुटा लिया सब पर, अब थोड़ी ख़ुद से मोहब्बत कर लो।
'साईकल पर सवार उसकी ज़िन्दगी अब संतुलित होने को है।' विश्व साईकल दिवस के अवसर पर एक सच्ची कहानी, जिसे बहुतों ने जिया है, अपने-अपने तरीकों से।
"अच्छा, यदि एकादशी का उपवास ना रख पाए तेरी बहु, तो भी अच्छी रहेगी क्या?" प्रभात ने माँ की आँखों में झाँकते हुए कहा।
अब हम छोटी लड़कियों जितने अल्हड़ तो नहीं रह गए हैं, पर इतने उम्रदराज़ भी नहीं हुए हैं कि ज़िन्दगी से बेज़ार हो जाएँ।
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