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अब सब ये समझ जाएँ कि ज़बरदस्ती से किसी को कुछ हासिल नहीं होगा, अगर मैं 'ना' करूँ तो वो सिर्फ 'ना' है और 'मैं नहीं हूँ तेरी किरण!'
काश कि हर महिला यह समझ पाती कि वह सिर्फ एक देह नहीं बल्कि बुद्धि, बल, विवेक का भंडार भी है। देह समाहित है हम में, हम देह में नहीं।
कई बार ज़िक्र हुआ, कई बार बहस हुई, ढेरों लेख लिखे गए, लेकिन हर घर में कभी ना कभी ये ज़रूर सुनाई दिया है, "ये कुछ नहीं करती!"
सिगरेट का धुआँ मेरे फेफड़ों में पूरी तरह से भर गया है। क्या सिगरेट पीने वाले हर इंसान के साथ यही होता है? यदि हाँ, तो सिगरेट क्यों पीते हैं?
"भाभी को सरपंच पद पर चुनाव में खड़ा कर दीजिये भैया। इससे चित और पट दोनों आप ही के रहेंगे। है कि नहीं?"
जब मानव समाज के नियमों का ताना-बाना बुन रहा था, तो बुद्धिमत्ता वाले काम पुरुष के हिस्से में रखे, और शरीरिक क्षमता वाले काम स्त्रियों के हवाले कर दिये।
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