कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
अपराधी हूँ खुद की रख के मौन, सहारे हैं ये अपने यही सोच रहती मौन, मगर अब ये ख़ामोशी चीखती है, सवाल कर के पूछे आखिर मैं हूँ कौन?...
गलत-सही निर्णय जो आप ही लेती हूं, लोगों को कम ही भाती हूं, मैं आज़ाद ख्यालों सी लड़की, अपनी एक सोच लिये, अपने उसूलों पर चलती हूं, मैं आधुनिक ज़माने की लड़की।
हम में से ज़्यादातर महिलाएं अपनी ही ज़िंदगी किसी और की पसंद के हिसाब से जीना शुरु कर देते हैं और हम उसमें सहजता महसूस करते हैं।
किसी को नहीं लेकिन जैसे जैसे जीवन रुपी इस परीक्षा से गुज़रने लगी हूँ, डिग्री के लिए दिए जाने वाले वो एक्साम्स बहुत छोटे और आसान लगते हैं।
कल! देखा मैंने, उस अजीब औरत को! सोचा कभी जाने क्यों इतनी अजीब होती हैं ये औरतें? इतनी सशक्त होते हुए भी, असहाय सी दिखती हैं, ये औरतें।
अपने ही घर में पहचान ढूंढती, प्यार के दो शब्द को तरसती, पल भर गले लगा कर सारी थकान भूलने वाली मशीन उर्फ 'औरत' पूछती है तुमसे, कहाँ हूँ मैं?
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