कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

meri beti
पापा, मैं अपने घरवालों के लिए कमाना चाहती हूँ…

संध्या तुम्हारे कहने से पढ़ाई करा दी और अब क्या बेटी के पैसों का खाएंगे। बस यही दिन देखने रह गए थे। कहीं नहीं करनी नौकरी।

टिप्पणी देखें ( 0 )
अगर आप थोड़े से ठहराव की तलाश में हैं तो ज़रूर देखें फिल्म स्केटर गर्ल

फिल्म स्केटर गर्ल के एक संवाद में महारानी जैसिका से कहती हैं, “यहां के लोगों को बदलाव नहीं पसंद है। खासकर तब जब बदलाव एक औरत ला रही हो।"

टिप्पणी देखें ( 0 )
आपके होते हुए आज की बेटी परेशान क्यूँ है?

आज कदम से कदम मिलाकर वो खड़ी है आपके साथ, हौसला बुलंद है, तालीम याफ्ता हैं। फिर भी हमारे समाज के बड़ों का नज़र बंद क्यों है?

टिप्पणी देखें ( 0 )
मेरी इस सहेली के घर इतिहास दोहराया जा रहा था…

मैं दरवाजे से लौट आई। सहेली के चेहरे पर चढ़ा हुआ मुखौटा जो दिख गया। आधुनिकता का ढोल पीटने वाली मेरी सहेली, विचारों से आधुनिक नहीं हो पाई।

टिप्पणी देखें ( 0 )
विदा होकर भी कहाँ विदा हो पाती हैं बेटियाँ…

घर के किसी कोने में आज भी उनकी साइकल सजती है, त्योहारों में अब पहले सी शरारत कहाँ होती है, कहीं रूमाल तो कहीं हेयर क्लिप छोड़ जाती हैं बेटियाँ!

टिप्पणी देखें ( 0 )
क्या मेरे नौकरी करने से आपकी इज़्ज़त कम हो जाती?

ज़ुबैदा को ऐसा लगता था कि उसके सपनों को पंख मिल जाएंगे, पर ऐसा हो न सका। पंख तो उस को मिल गए पर उड़ने की आज़ादी नहीं मिल पायी।

टिप्पणी देखें ( 0 )
post_tag
betiyaan
और पढ़ें !

The Magic Mindset : How to Find Your Happy Place

अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!

Women In Corporate Allies 2020

All Categories