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एक दिन यही रेस आपकी अपनी बेटी जीत लेगी और वह उसकी अपनी जीत होगी, कोई नहीं होगा उसका जीत का दावेदार या हकदार।
मायके से विदा होते, माँ के गले लग उनकी आँख पोंछते, जब पीठ पर हल्की सी धौल जमा रुखाई से खुद को अलग करती हैं, तब पुरखिन होती हैं बेटियाँ!
मीरा का आत्मसम्मान तो शादी के कुछ महीनों बाद से ही छलनी होने लगा था पर वह अपनी बेटी के भविष्य लिए इतना सब कुछ बर्दाश्त कर रही थी।
तुम्हारे साथ भी ऐसी कई घटनाएं होंगी। अगर शर्मिंदगी महसूस हो, झिटक देना। कभी कैंटीन में दोस्तों संग चाय/खाना गिर जाए, रंजिश तज देना।
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