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"2020 में भी हम स्त्रीवादी साहित्य आलोचना दृष्टि पर नहीं लिखेंगे तो फिर कब?" कहती हैं पुस्तक आलोचना का स्त्री पक्ष की लेखिका सुजाता...
हिंदी साहित्य में इन महिला साहित्यकारों का योगदान इतना है कि इनकी रचनाएं, हर पाठक को उसके जीवन के उद्देश्यों के तलाश करने में मदद करेंगी।
पर्दे पर उतरी हुई इस्मत चुगताई की सबसे अधिक बहस में रही कहानी 'लिहाफ़' इसे एक दफ़ा फिर से पढ़ने की ज़रूरत को पुख़्ता ज़रूर कर देती है।
निवेदिता मेनन की किताब 'नारीवादी निगाह से' का मूल बिंदू यह कहा जा सकता है कि मार्क्सवाद विचारधारा की तरह नारीवाद भी सार्वभौम नहीं है।
मेरे लिए महादेवी वर्मा की कविता में ये लाइन हमेशा से प्रेरणादायक रही है, “घर तिमीर में, उर तिमीर में, आ! सखि एक दीपक बार ली।”
मैरी वोलस्टोनक्राफ्ट ने अपनी किताब में उस सामाजिक व्यवस्था की आलोचना की जिसमें स्त्रियों को अच्छी महिला बनने पर जोर दिया जाता है...
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