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अरी लड़कियों, ज़रा मेरी ये बात सुनो तो!

अरी लड़कियों इस में लॉकडाउन में ज़रा ये सब नया सीखने के साथ-साथ अपने घरवालों से कहो कि घर के लड़के भी कुछ नया अब तो सीख ही डालें! 

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पत्नी करे तो फ़र्ज़, पति करे तो जोरू का गुलाम?

आपकी नजर में पत्नी की, पत्नी की परिवार का ध्यान रखना जोरू का गुलाम हो गया? और पत्नी जो पति और उसके परिवार वालों के लिए करती है, वो फर्ज!

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क्यों मेरी कमाई से तुम्हारा घर नहीं चलता?

मैं सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक घर और ऑफिस के काम में लगी रहती हूँ, कभी थकती भी हूँ, फिर भी यही सुनने को मिलता है कि करती क्या हो?

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क्या औरतों सिर्फ़ दूसरों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए बनी हैं?

पुरूष केवल एक भूमिका निभाते हुए, कर्मठ, मज़बूत साबित होता है और महिलायें न जाने कितनी भूमिकाओं में लिप्त हैं और फिर भी अबला और कमज़ोर कहलाती हैं। 

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दिव्या दत्ता की कविता, अपने बराबर कर दो ना, क्या कह रही है और क्यों?

दिव्या दत्ता की कविता अपने बराबर कर दो ना , उनके भाई डॉ. राहुल दत्ता ने लिखी है, इसमें समानता की बात को बेहद अच्छे और प्यारे भाव से रखा गया है। 

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क्यों बच्चों को बिगाड़ने में हमेशा माँ का हाथ होता है, पिता का नहीं?

आज भी बच्चों की परवरिश में माँ का योगदान ज़्यादा रहता है। बच्चों को बिगाड़ने और सँवारने में जितना माँ का योगदान है, उतना ही पिता का भी फ़र्ज़ होना चाहिये।

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