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माँ-बाप अपनी बेटी की खुशियों की दुहाई देते हुए उसे पैसे से तोलने की कोशिश करना नहीं छोड़ते और लालची लोग इस मौके का फ़ायदा उठाना बंद नहीं करते।
मीता, तुम हमको हँसना बोलना, उठना बैठना, सब तौर तरीक़ा सिखा दो, तो सायद (शायद) डागदर साहब को हम थोड़ा सा खुस कर सकें।
पराग को देखते ही मैं उसे पहचान गई। यह वही पराग था। उसने मुझे देखते ही अपनी नज़रें चुरा लीं और मुझे अनदेखा करने का नाटक करने लगा।
उसकी बात सुनकर मैं चौंक पड़ी और मोहिनी जी से पूछ बैठी, “पलक क्या कह रही है दीदी ? क्या डॉक्टर साहब आप पर हाथ उठाते हैं?”
दरवाज़े पर मोहिनी जी खड़ी नज़र आईं।मेरे दिमाग़ ने मुझे एक बार चेताया कि मैं दरवाज़ा न खोलूँ परन्तु फिर मुझे तुरन्त ही पतिदेव की बात याद आ गई।
हम सामाजिक बुराई से लड़कर, जागरूक होकर और महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न करके घरेलू हिंसा के खिलाफ काम कर सकते हैं।
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