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और फिर एक स्त्री के सिसकने की आवाज़ आई। ऐसी आवाज़ जो कभी बहुत पहले दर्द होने पर चीखी होगी लेकिन अब शायद उसे शारीरिक दर्द की आदत पड़ गई हो...
बेटी आपकी मर्ज़ी से शादी तो कर लेगी पर वो ख़ुश नहीं रह पाएगी। रोहिणी चाहे तो आपके ख़िलाफ़ पुलिस कम्प्लेन भी कर सकती है पर उसने ऐसा नहीं किया।
हम सब को ये समझना है कि घरेलु हिंसा निजी मामला नहीं है बल्कि पुरुषवादी समाज की एक चाल है जिससे पीड़ित महिला को कोई मदद न मिल पाए।
रोज़ रोज़ आती आवाज़ों में नेहा को अपनी माँ की सिसकियाँ दिखती और उसकी आत्मा तड़प उठती। लेकिन अब बस हो चुका था...
शादी की पहली रात, एक लम्बे इंतज़ार के बाद पतिदेव ने कमरे में लड़खड़ाते हुए कदम रखा। नमिता के तो डर के मारे होश उड़ गए।
माँ ने जो सिखाया था वह वही करने की कोशिश करती लेकिन तब भी हर रोज कोई न कोई कमी निकल ही जाती और पति से भी हर रोज उसकी शिकायत होती।
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