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शास्त्रों में भी कहा गया है कि इंसान किसी भी ऋण को चुका सकता है पर मातृ-पितृ ऋण से उऋण नहीं हो सकता। फिर ऐसे रिवाज कैसे बने?
नव्या दुल्हन के जोड़े में सजी माँ की बातें सुन रही थी-"ससुराल में जल्दी उठना, बड़ों से बहस ना करना, उल्टे जवाब मत देना, सभी कामों को अच्छी तरह करना।"
ले कर्ज सबका सर पर भारी, वो जमीन से अलविदा हो गए, कुछ खास ही थे वो चेहरे, जो देश की मिट्टी में ही खो गए।
दो बार पहले भी यही सवाल-जवाब हुए थे और दहेज पर सहमति ना बनने के बाद उसे काव्य-गोष्ठिओं में रात बिताने वाली 'चरित्रहीन' का तमगा दिया गया था।
दुश्मनों ना आना पास, क्या तुम्हें मौत का इंतज़ार है, कस कर कमर को खड़े हैं वो, सरहद पर सब तैयार हैं। %
नारी तू उठ-चल उठ, अपनी पहचान बना, डर मत, कुछ कर, तू पढ़, आगे बढ़, मत पीछे हट, तू बोलेगी, मुँह खोलेगी, तभी ज़माना बदलेगी।
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