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मुझे याद है उनके आने के पहले लड़कों में भगदड़ सी मच जाती। कुछ बाथरूम में छिपने दौड़ते, कुछ उपर वाली सीट पर सोने का बहाना करते...
सारी उम्र लोगों ने उन्हें कभी इंसान नहीं माना। सच भी है, वो इंसान नहीं, बेरंग पानी में रंग घोलते, रंगों के भगवान थे। मेरे पुन्नू अंकल...
आज भी लोग अलग जाति और धर्म में शादी करने के कारण मारे जाते हैं, ऐसे में लगता है कि समलैंगिक विवाह के विचार को स्वीकार करना और भी मुश्किल है।
संघर्ष और किरण तो हमजोली ही थे तो कैसे छोड़ देता संघर्ष गौरी का साथ? कुछ ईर्ष्या करने वालों ने कर दी ख़बर पुलिस में।
प्राइड मंथ में मेरा एक प्रश्न है क्या ये समानता वैसी ही है जैसी आपको महिला और पुरुष में चाहिए? या कहीं आप सलेक्टिव इक्वलिटी का हिस्सा तो नहीं?
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