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आप या तो हिंसा के समर्थक दिखेंगे या हिंसा के विरोध में। इसके लिए न किसी गांधीवादी दर्शन की जरूरत है न ही किसी मार्क्सवादी दर्शन की।
“ये देखो शर्मा जी ने अपने फ्लेट को एक अकेली लड़की को किराये पर दे दिया है, बुढ़ऊ का दिमाग ख़राब हो गया है।" लीना ताई ने मुँह बिचकाते हुए कहा।
साथी हूँ बराबर की मुझे कमजोर ना तुम समझो, इक जिंदा इंसान हूँ मुझे कोई चीज़ ना तुम समझो, मालिक बनने की कोशिश न करना।
इस दौर में कहते हैं सब, हम लिखेंगे नई कहानियां, जन्म लूं मैं किसी भी सदी में, क्यों लगता है बिकती हैं बस मेरी जवानियां?
देश में महिला सशक्तिकरण योजनाएं भले ही महिलाओं के स्वाभिमान में सहायक हों, लेकिन लिंगानुपात आंकड़े इन योजनाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।
माँ को देखा हर बात में सर झुका कर, ग़लत को भी सही बताते, यही शिक्षा पाई उनसे, ‘आत्मसम्मान चाहे ना रहे, पर परिवार को तुम बचाना...'
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