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naari aur samaaj
सदियों बाद आज फिर ज़िंदा हो रही हूँ मैं…

एक सदियों पहले ही मर चुकी थी, एक अचानक से नई उगी थी। एक ने पहन लिया था सन्नाटा, एक आंदोलन चला रही थी...

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अब बेटे की शादी कर देते हैं ताकि बहु आकर घर संभाल ले…

घर संभालने के लिए केवल लड़की को ही क्यों सामने परोस दिया जाता है? लड़के के माता-पिता क्या लड़कों की जिम्मेदारी नहीं होते?

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अपना हक़ मांगने से मैं ‘रिबेल’ या विद्रोही कैसे बन जाती हूँ?

मुझे कपड़े पहनने की इजाज़त भी आपसे लेनी पड़ती है और काम के लिए देर रात बाहर रहना हो तो आस-पास का माहौल देखना पड़ता है, तो मैं रिबेल ना करूं?

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क्या मेरे इन प्रश्नों का जवाब आप में से किसी के पास है?

मेरा सवाल एक ही है क्यों मुझे हर रीति रिवाज से बांधा जाता हैं और खासकर माँ बनने के बाद मेरी निज़ी जिंदगी पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया जाता है।

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जब वो कुछ नहीं करती तब वो कुछ ऐसा करती है…

जब वो कुछ नहीं करती तब वो अपनी माँ को फोन करती है और पूछती है कि वे सारी उमर घर पर खाली बैठी आज तक बोर क्यों नहीं हुई!

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आपने हमें बताया कि दुखी होने के बावजूद औरतें शादी के रिश्ते को निभाती हैं क्यूँकि…

बच्चों की वजह से मैं अपने सपनों ओर इच्छाओं की कुर्बानी दे सकती हूँ लेकिन बच्चों को किसी चीज की कमी बर्दाश्त नहीं कर सकती।

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