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प्रिया रमानी के जश्न के बीच हर बार की तरह हम इन दलित महिलाओं को भूल गए। तो क्या हम इस तरह की समानता की ओर बढ़ रहे हैं?
गर्ल्स हॉस्टल था तो परिवार वालों को भी कोई अफसोस नहीं था और न ही कोई डर। मगर मुझे ही पता था मैं वहां किन हालातों में रह रही थी।
समाज का दोगलापन आज भी मुझे समझ नहीं आता है, जो दिन में इज्ज़त की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, वही रात के अन्धेरे में जिस्म का मोल भाव करते हैं।
भले लोग कह रहे हों कि मिंत्रा लोगो कंट्रोवर्सी एक पब्लिसिटी स्टंट है। मेरा भी मानना है कि एक पल को मान लेते हैं कि यह यही है मगर...
रजनी चांडी का बोल्ड ओर कांफिडेंट फोटोशुट हर महिला के लिए प्रेरणादायक है, जिन्हें अपने मन की उड़ान भरने की इच्छा है।
रेणुका शहाणे की इस फ़िल्म त्रिभंग की कहानी में तीनों स्त्रियों का दर्द टूटता नहीं बल्कि एक से दूसरे के पास खूबसूरती से पहुँच जाता है।
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