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राजी तो हुई बबीता बुआ पर सिंदूर दान के बाद उन्होंने सभी लोगों के सामने अपना सिंदूर धो डाला और अपना मंगलसूत्र उतार दिया।
जिस इंटर्नेट का इस्तेमाल कर माँ की फ़ोटो डाल रहे हैं, उससे आप खाना बनाना क्यूँ नहीं सीख सकते? या फिर ये हाथ सिर्फ़ पोस्ट बटन दबाने के लिए है?
मेरा घर दिखते ही, मेरे पैर में जैसे पंख लग गए हो। मैं भाग कर अपने घर के अंदर गई, मुड़ के देखा की वो कौन थी? वो दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी।
पारुल खख्खर की कविता शव वाहिनी गंगा सिर्फ एक माध्यम था उनका अपनी मन की तकलीफ को व्यक्त करने का लेकिन ट्रोल्स ने इसे कोई और ही रूप दे दिया।
जय नेहा को हर समय नीचा दिखाता था कि, “तुम औरत हो तुम कुछ नहीं कर सकती हो, जो पुरुषों का काम हैं उन्हें ही करने दो”।
क्या, कभी सुना है, कि पुरुष पिता नहीं बन पाया तो औरत ने दूसरी शादी कर ली? या औरत दूसरी शादी कर, दूसरा पति ले आई? नहीं ना?
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