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क्या घर और बाहर महिलाओं के योगदान के एवज़ में सामाजिक स्तर पर उनको लेकर मान्यताओं में बदलाव आया है? उनके बारे में पुरुषों की सोच बदली है?
आज अपनी बेटी के नौकरी छोड़ने की बात सुन दोनों बेचैन हो उठे, अपनी बच्ची को इस मुकाम तक पहुंचाने में बहुत कठिन तपस्या की थी।
ऑफिस से घर आकर मम्मी खाना बनाती और अगर पापा सब्ज़ी काटते तो दादी कहतीं, "हमने कभी अपने लड़कों से काम नहीं करवाया, अब तो बेचारे! सब करते हैं।"
अब वह सोच रही है अगर थियेटर प्रैक्टिस का टाइम चेंज नहीं होता है तो उसे थियेटर छोड़ देना चाहिए। पर क्या वह कुछ और कर सकती है?
बेटा वो समय ही ऐसा था। बेटियां अपने परिवार के निर्णय का प्रतिवाद नहीं करतीं थीं। वैसे भी मैं आत्मनिर्भर भी तो नहीं थी तुम्हारी तरह। उस पर मेरी ये लंबाई...
"सही कहा सुजाता जी आपने, उमा यह नहीं कर सकती। लड़की अंतिम क्रिया करने लगी तो मरने वाले को मुक्ति कैसी मिलेगी?"
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