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पैरों में समाज के ताने-बाने पहनाकर, लोग क्या कहेंगे से दहलीज़ ना पार करना सिखाया,मूरत पूरी रंग-बिरंगे रंगों से भरकर, बस एक रंग ना भरा...
अगली बार मुझे लाल, हरा, भगवा, नीले रंग का परचम बना देना, अक्सर लोगों के खून में उबाल आ जाता है, पड़े किसी की भी इन पर गलती से भी जो निगाह मैली!
तापसी पन्नू फिल्म रश्मि रॉकेट के उस डायलॉग की तरह है “हार-जीत तो बस परिणाम है कोशिश करते रहना अपना काम है...”
कहीं न कहीं मन में एक बात खटकी कि शादी के बाद महिलाओं का नाम क्यों बदलना पड़ता है? एक पहचान जो 25–30 साल में बनती है एकदम से शादी होते ही ख़तम क्यों?
मुंबई पुलिस के अनुसार फिल्में समाज का सच दिखाती हैं, अपने शब्दों और एक्शन को सावधानी के साथ चुनें, वरना कानून का सामना करना पड़ सकता है।
अरे! अरे! अरे! ठीक से बैठो, थोड़ा कम बोलो, मोटी हो गयी हो...कौन करेगा तुमसे शादी?कुछ ऐसी ही बातें तुम मुझे हर रोज़ सुनाया करते हो...
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