कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
जिस देश के घर महिला चलाती हैं, उसी देश को ज़्यादातर इन्हीं घरों के पुरुष चलाते हैं और गौर से देखें तो देश के हालात इस तथ्य की गवाही देते हैं!
वह मेरे सफ़ेद बालों को देखकर आंटी बोलते हैं और शायद उन्हें लगता है कि मुझे उनके लॉरियल में रंगे बालों को देखते हुए उनको बेटा बुलाना चाहिए...
हाल ही में एक रिर्पोट में आया है कि कोरोना माहमारी के कारण 47 फीसदी कामकाजी महिलाएं काम के प्रेशर के कारण भावनात्मक परेशानी महसूस कर रही हैं।
एक महिला पत्रकार होने के नाते मैं बदलाव से इनकार नहीं कर सकती, लेकिन अनुभव से इतना जरूर कहूंगी कि मीडिया में आज भी पुरुषवादी सोच हावी है।
वे लोग जब मेला में घूम रही थीं तो भैया को अपने दोस्तों के साथ लड़कियों पर कमेंट्स करते देखा। उसके भैया सामने बहनों को देख अचंभित थे।
हमारा समाज औरतों के खिलाफ हुई हर हिंसा में औरत की गलती ढूंढ ही लेता है, फिर वो चाहे उसके कपड़े हो, उसका काम या उसका रात के समय बाहर जाना।
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