कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
हम सब एक ढोंगी समाज का हिस्सा हैं। बगुलाभगत तो यहां इतने हैं गिनती कर कर के थक जाएंगे... लेकिन इनकी गिनती कम नहीं होगी...
अक्सर स्वाभिमानी स्वतंत्र महिलाओं को समाज के लिए विस्फ़ोटक बता, उनके लिए परस्पर षड़यंत्र रचने में लगे रहते हैं ये समाज के ठेकेदार।
उनका किचन शॉर्ट नोट्स की पर्चियों से पटा रहता था और काम करने के दौरान वे रिवाइज करती रहती थीं, कहती हैं BPSC टॉपर मनोरमा।
मंदिरा बेदी के दुःख को समझने से अधिक उसके कपड़ों से लोगों को परेशानी हैl क्या जींस पहनने वाली महिलाओं को दुःख नहीं होता?
समय बदल गया पर लोगों की सोच आज भी नहीं बदली। आज भी स्त्री भोग की वस्तु है, उसे उनके शरीर से ही तौला जाता है।
'मर्यादा का पालन' नाम की बेड़ियाँ बना औरत को बांध देना, या सिर्फ़ तब याद आना जब औरत की बात हो, ग़लत है। आपका क्या मानना है?
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