कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
"आज मैंने आपसे आज सीखा है। दादी जी के स्वर्गीय होते ही जैसे बुआ जी का मायका खत्म हो गया, ठीक वैसे ही कल को जब मेरी बेटी होगी तब..."
अपनी पोती को गोद में लेकर उन्होंने कहा, "यह बच्ची अभी दुनिया में आयी है, इसने तुम्हें क्या दुःख दे दिया जो रो रही हो? क्या ले लिया इसने?"
"अपने हाथों से सारी तैयारी करवाऊँगी। पहला चौथ है! प्रिया क्या जाने रस्मों रिवाज़?" सोच-सोच रमा जी ख़ुशी से दोहरी होती जा रही थीं।
"पहले करवाचौथ से आज तक सब कुछ मैंने खुद से ही किया। कभी कोई कमी ना रही लेकिन, बस कुछ अरमान अधूरे रह गए जिंदगी में..."
अंजलि का साथ सास ने बहुत अच्छे से दिया। अंजली के इतने आर्डर दिन भर में आ जाते थे कि सास-बहू को पूरा करने में मुश्किल हो जाती थी।
"एक झूठ बोलने से अगर रिश्ते सवंरते हैं तो मुझे नहीं लगता इसमें कुछ हर्ज है। तुम अपनी मां से फोन पर कह देना कि मैंने तुम्हें यह सब करने को कहा है..."
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!
Please enter your email address